जैन समाज के एम पी जैन ने बताया कि पर्युषण पर्व में आत्मा के दस स्वभाव पर कैसे विजय पाया जाए इसी को बताया जाता है। पर्युषण पर्व का आठवां दिवस ‘उत्तम त्याग’ नामक दिवस है। पटना के मीठापुर, कदमकुआँ, मुरादपुर, कमलदह मंदिर गुलजार बाग सहित सभी दिगम्बर जैन मंदिरों में त्याग धर्म की पूजा की गयी। सभी दिगम्बर जैन मंदिरों में सुबह से हीं पूजा करने हेतु श्रद्धालु मंदिरों में पहुँचने लगे। मंदिरों में श्रद्धालुओं ने भगवान् का अभिषेक किया एवं शांतिधारा के बाद दशलक्षण पूजन में त्याग धर्म की पूजा की गयी। एम पी जैन ने बताया कि श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर कदमकुआं में भोपाल से पधारे पंडित शीतल जैन शास्त्री ने श्रद्धालुओं को बताया कि दान चार प्रकार का होता है औषधि-अभय-शास्त्र-आहार चार प्रकार के दान में सर्वश्रेष्ठ आहार दान होता है क्योंकि साधु अभय दान करते हैं एवं उसके साथ साथ जीवों को अभय दान देते हैं औषधी दान देने वाला व्यक्ति सदैव निरोगी रहता है, शास्त्र दान देने से मनुष्य ज्ञानवान एवं रत्नत्रय का पालन करने वाला होता है। त्याग से सुख, सुख से शांति, शांति से समृद्धि प्राप्त होती है। मनुष्य को अपने जीवन में त्याग अवश्य करना चाहिए वह किसी भी रूप में हो सकता है। शास्त्री जी ने बताया कि त्याग के बिना कोई धर्म जीवित नहीं रह सकता। जिसने भी अपने जीवन में त्याग किया है वही चमकता है। धर्म और आत्मा को जीवित रखने के लिए त्याग आवश्यक है। समस्त भोग विलास की वस्तु का त्याग करना ही मुक्ति का मार्ग है। अपने जीवन में खराब कार्यों और पापों का त्याग करना चाहिए तभी मनुष्य जीवन की सार्थकता है। इतिहास साक्षी है कि भगवान श्री राम, भगवान महावीर, आदि महापुरुष अपने त्याग धर्म के कारण हीं जन-जन में पूजनीय और वंदनीय है। धर्म साधना का सच्चा आनंद राग में नहीं, त्याग में है,निस्वार्थ भाव से दिया गया दान ही त्याग धर्म है। जिन जिन बाह्य कारणों से आत्मा में विकार भाव उत्पन्न होते हैं, उन सभी कारणों को छोड़ना ही उत्तम त्याग धर्म है। आत्म कल्याण में बाधक तत्वों का विसर्जन करना ही त्याग धर्म है। संपूर्ण भोग विलास की वस्तुओं को त्याग करना ही मोक्ष मार्ग है । शास्त्री जी ने बताया कि त्याग शब्द का अर्थ है देना या छोड़ना। त्याग के बिना हमारा जीवन अधूरा है। त्याग एक ओर जहाँ हमें परिग्रह से मुक्ति दिलाता है तो दूसरी ओर हमें शान्ति और सुकून का एहसास भी कराता है।
एम पी जैन ने बताया कि मिठापुर दिगम्बर जैन मंदिर में त्याग धर्म की पूजा कराते हुए भोपाल से पधारे ब्रह्मचारी सुमित भैया ने कहा है कि जैन धर्म में त्याग का बड़ा महत्व है। त्याग करने वाला सदैव पूज्य होता है। शास्त्रों में कहा है जैन साधु देख लो त्याग करना सीख लो, त्याग से मनुष्य महान बनता है। जैन धर्म में 24 तीर्थंकर होते हैं जिन्होंने संपूर्ण परिग्रह का त्याग करके जैनश्वरी दीक्षा को ग्रहण किया यह सर्वाेत्कृष्ट त्याग है।