पटना। डीएवी पब्लिक स्कूल आर्य समाज मंदिर परिसर में 12 फरवरी 2025 को महर्षि दयानंद सरस्वती की 201वीं जयंती धूमधाम से मनाई गई। इस अवसर पर विद्यालय में विशेष प्रार्थना सभा, यज्ञ-हवन एवं भजन संध्या का आयोजन किया गया, जिसमें विद्यालय के छात्र-छात्राओं और शिक्षकों ने श्रद्धा व भक्ति के साथ भाग लिया। कार्यक्रम का शुभारंभ विद्यालय की प्रभारी प्राचार्या ऋतु जैन एवं अन्य शिक्षकों की ओर से दीप प्रज्वलन से हुआ। इसके बाद वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच यज्ञ-हवन संपन्न किया गया। संगीत शिक्षक सौरभ कुमार के नेतृत्व में छात्राओं ने सुमधुर भजनों की प्रस्तुति दी, जिससे पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया।
महर्षि दयानंद सरस्वती के आदर्शों को बताया
प्राचार्या ऋतु जैन ने महर्षि दयानंद सरस्वती के सत्कर्मों और आदर्शों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमें गर्व होना चाहिए कि हमने ऐसे युगपुरुष की धरती पर जन्म लिया, जिन्होंने समाज सुधार, शिक्षा और वेदों के पुनरुद्धार में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने कहा कि महर्षि दयानंद केवल एक संत नहीं, बल्कि महान चिंतक, समाज सुधारक, आर्य समाज के संस्थापक और एक सच्चे राष्ट्रनिर्माता थे। उनका योगदान भारतीय समाज और संस्कृति को नई दिशा देने वाला रहा है। उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं और हमें उनके दिखाए मार्ग पर चलना चाहिए।
भारतीय शिक्षा में गुरुकुल प्रणाली की पुनर्स्थापना
संस्कृत शिक्षक मुकेश चंद्र शास्त्री ने बताया कि महर्षि दयानंद ने भारतीय शिक्षा प्रणाली में गुरुकुलीय व्यवस्था को अपनाने पर जोर दिया और इसे पुनर्जीवित किया। उन्होंने भारतीय समाज को अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली के दुष्प्रभाव से बचाने और वेदों पर आधारित शिक्षा प्रणाली को पुनर्स्थापित करने का प्रयास किया। आधुनिक भारत के दूरदर्शी चिंतकों में उनका नाम सर्वोपरि है। उन्होंने कहा कि महर्षि के सपनों को साकार करने के लिए वर्ष 1886 में डीएवी (दयानंद एंग्लो वैदिक) स्कूलों की स्थापना हुई। पहला डीएवी स्कूल लाहौर में शुरू किया गया, जिसके पहले प्रधानाचार्य महात्मा हंसराज थे। आज डीएवी संस्थान पूरे देश में शिक्षा का प्रकाश फैला रहा है।
विद्यार्थियों की प्रस्तुतियां रहीं खास
विद्यालय के छात्रों ने भी महर्षि दयानंद के जीवन और विचारों पर अपने विचार व्यक्त किए। छात्रा सृष्टि, तानिया कुमारी और छात्र नवनीत ने महर्षि के जीवन पर प्रकाश डालते हुए उनके संघर्षों और उपलब्धियों की चर्चा की। उनके विचारों ने भारतीय समाज में जो जागृति पैदा की, उसका उल्लेख करते हुए छात्रों ने बताया कि कैसे उन्होंने मूर्तिपूजा का विरोध कर समाज को सत्य की ओर प्रेरित किया।
कार्यक्रम का समापन
कार्यक्रम के अंत में एमपी जैन ने धन्यवाद ज्ञापन किया और सभी को महर्षि दयानंद के आदर्शों पर चलने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि अगर हम महर्षि के सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाएं तो समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सकता है। इसके पश्चात शांति पाठ के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ। इस अवसर पर विद्यालय के शिक्षकगण, विद्यार्थी एवं अभिभावक बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। पूरे कार्यक्रम के दौरान महर्षि दयानंद सरस्वती के विचारों की गूंज और उनकी शिक्षाओं की प्रेरणा सभी के मन में अंकित होती रही।
महर्षि दयानंद सरस्वती के बारे में जानें
महर्षि दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात के टंकारा में हुआ था। उनका बचपन का नाम मूलशंकर था। उन्होंने सत्य की खोज में अपना घर त्याग दिया और कठोर तपस्या की। वेदों के अध्ययन के बाद उन्होंने वेदों की ओर लौटो (Back to Vedas) का नारा दिया, जिससे भारतीय समाज में नई चेतना का संचार हुआ। उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की, जिसका उद्देश्य सामाजिक कुरीतियों को दूर करना और वेदों पर आधारित एक आदर्श समाज की स्थापना करना था। वे सती प्रथा, बाल विवाह, जातिवाद और अंधविश्वासों के कट्टर विरोधी थे। उनके प्रयासों से भारतीय समाज में जागरूकता आई और स्वतंत्रता संग्राम को भी एक नया मार्गदर्शन मिला।
