अब धार्मिक आयोजनों में बढ़ गया है आडंबर…भगवान आडम्बरों से नहीं स्वाभाविकता से प्रसन्न होते हैं : आचार्य चंद्रभूषण

पटना। आध्यात्मिक सत्संग समिति की ओर से दादीजी मंदिर में चल रही सात दिवसीय भागवत कथा के चौथे दिन का प्रारंभ हनुमान चालीसा से हुआ। इसके बाद यजमान वाईसी अग्रवाल एवं लक्ष्मण टेकरीवाल ने सपत्नीक व्यास पूजन एवं गुरु पूजन किया। आज आचार्यश्री को माल्यार्पण दिगम्बर अग्रवाल, अशोक अग्रवाल, जय प्रकाश तोदी एवं राधेश्याम गोयल ने सपत्नीक किया। इसमें श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर आधारित सांस्कृतिक प्रस्तुति देख श्रद्धालु भाव-विभोर हो गए।

भागवत कथा का प्रारम्भ करते हुए शास्त्रोपासक आचार्य डॉ. चंद्रभूषणजी मिश्र ने बताया कि सभी देवताओं के लिए कुछ संख्या भी निर्धारित रहती है। नारायण की संख्या चार बताई जाती है, इसीलिए उनकी परिक्रमा चार बार होती है। भागवत के चौथे दिन कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। आचार्य ने बताया कि अवतार शब्द का अर्थ होता है ऊपर से नीचे उतरना। अवतरणनं अवतारह आचार्य श्री ने बताया कि भगवान जब सब जगह बराबर रहते हैं तो ऊपर से नीचे उतरने का क्या अर्थ है। भागवत के विद्वान आचार्यों ने इसकी व्याख्या करते हुए लिखा है कि अवतारों में मुख्य अवतार भगवान राम एवं श्रीकृष्ण को माना जाता है।

वे मानव बनकर आते हैं और सबके साथ घुलमिलकर लीला करते हैं। अलख भगवान सबको दिखाई देने लगते हैं। भगवान श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। भगवान श्रीकृष्ण लीला पुरुषोत्तम हैं। भगवान राम ने त्रेता युग के वातावरण में युगानुसार वैसी लीला की परन्तु श्रीकृष्ण का अवतार द्वापर और कलियुग के संधिकाल में माना जाता है, इसलिए भगवान श्रीकृष्ण कलियुगी जीवों के ज्यादा नजदीक हैं। आचार्य श्री ने बताया कि काल गणना के अनुसार अभी लगभग छह हजार वर्ष श्रीकृष्ण के अवतार को हुए हैं। श्रीकृष्ण ने जीवन दर्शन को गीता के माध्यम से सर्व सुलभ बनाया है और अपनी लीला के द्वारा वैसी लीला की जो साधारण मनुष्य भी अपने बचपन और जवानी में करता है।

आचार्य श्री ने बताया कि भगवान् श्रीकृष्ण को लगता है की भगवान बन के जन समाज से दूरी बढ़ जाती है। उनसे सम्बन्ध केवल पूजा पाठ तक ही सीमित हो जाता है। इसीलिए श्रीकृष्ण अपनी मंडली को गोप और गोपी कहकर बुलाते थे। आचार्य श्री ने बताया कि भवान श्रीकृष्ण ने सखा शब्द का अर्थ बदल दिया। आज के फेसबुक की तरह पूरी दुनिया को मित्र बना लिया। भागवत की टीका लिखते हुए स्वामी अखंडानंद सरस्वती ने लिखा है कि स माने साथ एवं ख माने खाना। जो साथ में बैठ कर खा लिया वह मित्र हो गया। इसीलिए कृष्ण लीला में जात-पात का भेद भाव नहीं है और न तो जूठा और शुद्ध का ही है क्योंकि कृष्ण सबकी पोटली को खोलकर एक में मिला देते हैं और सबलोग बैठ कर खाते हैं। आचार्य श्री ने कहा कि आजकल धार्मिक आयोजनों में आडम्बर ज्यादा हो गया है। अब आडम्बरों में भगवान का स्वभाव ही दब गया है। भगवान आडम्बरों से नहीं स्वाभाविकता से प्रसन्न होते हैं। कृष्ण सोने की मुकुट से ज्यादा गाय बांधने वाली रस्सी से मुरेठा बनाकर उसमे मोर पंख लगाकर ज्यादा खुश होते हैं।

चौथे दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव दिखलाया गया। प्रस्तुति देख सभी श्रोता भाव विभोर हो गए। सैकड़ों की संख्या में उपस्थित श्रोतागण श्रीकृष्ण की जय जयकार कर रहे थे। भागवत कथा का समापन आरती के साथ हुआ। कार्यक्रम का संचालन डॉ. गीता जैन ने किया। कथा में संयोजक गणेश खेतरीवाल, अरुणा अग्रवाल, महामंत्री विष्णु सुरेका, जय प्रकाश अग्रवाल, सुभाष चौधरी, गौरव अग्रवाल, जय प्रकाश तोदी, सूर्य नारायण, राजकुमार सर्राफ, शकुंतला अग्रवाल, तनुजा अग्रवाल, विनोद झुनझुनवाला, नंदन कुमारी एवं अर्चना अग्रवाल, सहित सैकड़ों की संख्या में महिलाएं एवं पुरुष मौजूद थे।

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Author: undekhilive

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