पटना। राजेन्द्रनगर में सात दिवसीय भागवत कथा का शुभारंभ आचार्य पंडित चन्द्रभूषण जी शास्त्री ने किया। मुख्य यजमान राजीव रॉय एवं बबिता रॉय थे। सैकड़ों लोगों ने भागवत कथा का रसपान किया। शनिवार दोपहर बाद भागवत कथा का प्रारंभ करते हुए शास्त्रोपासक आचार्य डॉ. चंद्रभूषणजी मिश्र ने बताया कि सभी देवताओं के लिए कुछ संख्या भी निर्धारित रहती है। नारायण की संख्या चार बताई जाती है, इसीलिए उनकी परिक्रमा चार बार होती है। भागवत के चौथे दिन कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है।
आचार्य डॉ. चंद्रभूषणजी मिश्र ने बताया कि अवतार शब्द का अर्थ होता है ऊपर से नीचे उतरना- अवतरणनं अवतारह। आचार्य श्री ने बताया कि भगवान जब सब जगह बराबर रहते हैं तो ऊपर से नीचे उतरने का क्या अर्थ है। भागवत के विद्वान आचार्यों ने इसकी व्याख्या करते हुए लिखा है कि अवतारों में मुख्य अवतार भगवान राम एवं श्रीकृष्ण का माना जाता है। वे मानव बनकर आते हैं और सबके साथ घुल-मिलकर लीला करते हैं। अलख भगवान सबको दिखाई देने लगते हैं। भगवान श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। भगवान श्रीकृष्ण लीला पुरुषोत्तम हैं। भगवान राम ने त्रेता युग के वातावरण में युगानुसार वैसी लीला की परन्तु श्रीकृष्ण का अवतार द्वापर और कलियुग के संधिकाल में माना जाता है, इसलिए भगवान श्रीकृष्ण कलियुगी जीवों के ज्यादा नजदीक हैं।
आचार्य श्री ने बताया कि काल गणना के अनुसार अभी लगभग छह हजार वर्ष श्रीकृष्ण के अवतार को हुए हैं। श्रीकृष्ण ने जीवन दर्शन को गीताजी के माध्यम से सर्व सुलभ बनाया है और अपनी लीला द्वारा वैसी लीला की जो साधारण मनुष्य भी अपने बचपन और जवानी में करता है। आचार्य श्री ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण को लगता है कि भगवान बनकर जन समाज से दूरी बढ़ जाती है। उनसे संबंध केवल पूजा पाठ तक ही सीमित हो जाता है। इसीलिए श्रीकृष्ण अपनी मंडली को गोप और गोपी कहकर बुलाते थे।
आचार्य श्री ने बताया कि भवान श्रीकृष्ण ने सखा शब्द का अर्थ बदल दिया। आज के फेसबुक की तरह पूरी दुनिया को मित्र बना लिया। भागवत की टीका हुए स्वामी अखंडानंद सरस्वती ने लिखा है कि “स” माने साथ एवं “ख” माने खाना। जो साथ में बैठ कर खा लिया वह मित्र हो गया। इसीलिए कृष्ण लीला में जात-पात का भेदभाव नहीं दिखता है। कृष्ण सबकी पोटली को खोलकर एक में मिला देते हैं और सब लोग बैठ कर खाते हैं। आचार्य श्री ने कहा कि आजकल धार्मिक आयोजनों में आडंबर ज्यादा हो गया है। अब आडंबरों में भगवान का स्वभाव ही दब गया है। भगवान आडंबरों से नहीं स्वाभाविकता से प्रसन्न होते हैं। शनिवार को भगवान श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की झांकी दिखायी गयी। कथा में समस्त रॉय परिवार सहित सौ से अधिक गणमान्य लोग भी उपस्थित रहे।