पटना। जैन मुनि आचार्य श्री 108 प्रसन्नसागरजी महाराज की अद्भुत साधना अपने एक पड़ाव की ओर है। मुनि महाराज का 557 दिनों का मौन व्रत और 496 दिनों का निर्जला उपवास आगामी 28 जनवरी को टूटने वाला है। इस अवसर पर पटना समेत देश-विदेश से पारसनाथ में करीब ढाई लाख श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। बाबा रामदेव समेत सैकड़ों संत-मुनि इस अलौकिक पल के साक्षी बनेंगे।
21 जुलाई 2021 से जैन मुनि आचार्य श्री 108 प्रसन्नसागरजी महाराज जी ने मौन साधना सह उपवास व्रत कर रहे हैं। भगवान महावीर ने भी ऐसी मौन साधना व उपवास व्रत किया था। इसे सिंहनिष्क्रीड़ित व्रत कहा जाता है। फिलहाल आचार्य श्री झारखंड के पारसनाथ पहाड़ी पर विराजमान हैं। पटना जैन संघ से जुड़े एमपी जैन के अनुसार मुनि महाराज 557 दिन (करीब डेढ़ साल से अधिक समय) बाद 28 जनवरी 2023 को आहार लेकर अपना सिंहनिस्क्रीड़ित महाव्रत का मौन व्रत व उपवास समाप्त करेंगे। मौन महाव्रत के पहले मुनि महाराज के दर्शन के लिए पटना से गुरु भक्त पारसनाथ पहुंचने लगे हैं। इससे पहले वे पटना प्रवास भी कर चुके हैं।
यह सिंहनिष्क्रीड़ित व्रत की अद्भुत महामौन साधना मानी जा रही है। इससे पहले भी आचार्य श्री 186 दिन की मौन साधना और 153 दिनों का उपवास कर चुके हैं। आचार्य श्री ने अपने दीक्षा काल के 32 वर्षों में अब तक 3500 से ज्यादा उपवास की साधना कर चुके हैं। वह पिछले कई वर्षों से एक दिन आहार एक दिन उपवास कर रहे हैं। कई बार कभी एक दिन आहार तो कभी 15 दिनों तक उपवास, तो कभी आहार के बाद 20 दिन तो कभी 10 दिनों तक उपवास करते हैं। लेकिन मौन साधना व्रत निरंतर चलता रहता है। इस दौरान वे कुछ भी नहीं लेते, पानी तक नहीं। उपवास के अगले आहार वाले दिन यदि अष्टमी या चौदस होती है तो फिर दो दिन के उपवास के बाद तीसरे दिन आहार ग्रहण करते हैं। वे प्रतिदिन अहले सुबह 2.30 बजे से लेकर रात्रि 12 बजे तक धर्म ध्यान, साधना एवं तपस्या में लीन रहते हैं।
इस तरह लेते हैं आहार
पहले भी अंतर्मना मुनि महाराज 296, 186, 80, 50 आदि दिनों का उपवास एवं मौन व्रत धारण कर चुके हैं। जैन मुनि दिन में केवल एक बार ही खड़े होकर, बिना किसी बर्तन के अपने हाथों को थाली की तरह प्रयोग कर आहार लेते हैं। इसके बाद वे उस दिन पानी भी नहीं पीते हैं।
आचार्य श्री के अमृत वचन
अपनी इस यात्रा के बारे में उनका उद्देश्य है नष्ट होती नैतिकता, गुम होते आदर्श, विलुप्त होती मानव सेवा और लुप्त होती आगम परंपरा को पुनर्जीवित करने का शंखनाद करना है। उनकी सोच है कि यदि तुम्हें कोई एक चीज बदलनी है, तो सिर्फ अपने आप को बदलो। तुम्हारे बदले बगैर संसार नहीं बदलेगा।
मुनिश्री के संदेश
– प्रतिस्पर्द्धा से प्रगति की ओर
– तनाव से प्रेम की ओर
– मानवता से राष्ट्रीयता की ओर
– मुस्कान से परमात्मा की ओर
– चरित्र से संवेदनाओं की ओर
जानिए तपाचार्य अंतर्मना मुनिश्री के बारे में
पहले का नाम : दिलीप जैन
पिता का नाम : अभय कुमार जैन
माता का नाम : शोभा जैन
जन्म स्थान : छतरपुर, मध्यप्रदेश
जन्मतिथि : 23 जुलाई 1970
ब्रह्मचर्य व्रत : 12 अप्रैल 1986
मुनि दीक्षा : परतापुर, राजस्थान
दीक्षा गुरु : पुष्पगिरी तीर्थ प्रणेता आचार्य श्री पुष्पदंत सागर जी महाराज
पदयात्रा : भारत में 88000 किमी से ज्यादा
एकांतवास : सर्वश्रेष्ठ मानते हैं मुनिश्री