जैन धर्मावलंबियों ने 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ का मोक्ष कल्याणक मनाया

पटना के आदिनाथ दिगम्बर जैन चैत्यालय मुरादपुर सहित अन्य दिगम्बर जैन मंदिरों में 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ का मोक्ष कल्याणक मनाया गया। मौके पर सभी मंदिरों में निर्वाण लाडू चढ़ाया गया। दिगम्बर जैन चैत्यालय मुरादपु में प्रातः भगवान का अभिषेक प्रदीप पहाड़िया, अनिल गंगवाल, सुनील जैन गंगवाल, सुबोध जैन फंटी आदि ने किया। भगवान की शांतिधारा सभी ने सम्मिलित ढंग से किया। पूजा में मीरा जैन, पूजा पहाड़िया, सारिका जैन, सरिता जैन पहाड़िया, मीना गंगवाल जैन सहित अन्य ने किया।

जैन संघ पटना के मीडिया सचिव एम पी जैन ने बताया कि भगवान पार्श्वनाथ का जन्म आज से लगभग 2 हजार 9 सौ वर्ष पूर्व वाराणसी में हुआ था। वाराणासी में अश्वसेन नाम के इक्ष्वाकुवंशीय राजा थे। उनकी रानी वामा ने पौष कृष्‍ण एकादशी के दिन महातेजस्वी पुत्र को जन्म दिया, जिसके शरीर पर सर्पचिह्म था। वामा देवी ने गर्भकाल में एक बार स्वप्न में एक सर्प देखा था, इसलिए पुत्र का नाम ‘पार्श्व’ रखा गया। उनका प्रारंभिक जीवन राजकुमार के रूप में व्यतीत हुआ। एक दिन पार्श्व ने अपने महल से देखा कि पुरवासी पूजा की सामग्री लिये एक ओर जा रहे हैं। वहाँ जाकर उन्होंने देखा कि एक तपस्वी जहाँ पंचाग्नि जला रहा है, और अग्नि में एक सर्प का जोड़ा मर रहा है, तब पार्श्व ने कहा— ‘दयाहीन’ धर्म किसी काम का नहीं’। तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने तीस वर्ष की आयु में घर त्याग दिया था और जैनेश्वरी दीक्षा ली थी और ब्रह्मचारी अविवाहित थे। काशी में 83 दिन की कठोर तपस्या करने के बाद 84वें दिन उन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था। पुंड़्र, ताम्रलिप्त आदि अनेक देशों में उन्होंने भ्रमण किया। ताम्रलिप्त में उनके शिष्य हुए। पार्श्वनाथ ने चतुर्विध संघ की स्थापना की, जिसमे मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविका होते है और आज भी जैन समाज इसी स्वरुप में है। प्रत्येक गण एक गणधर के अन्तर्गत कार्य करता था। सभी अनुयायियों, स्त्री हो या पुरुष सभी को समान माना जाता था। सारनाथ जैन-आगम ग्रंथों में सिंहपुर के नाम से प्रसिद्ध है। यहीं पर जैन धर्म के 11वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ जी ने जन्म लिया था और अपने अहिंसा धर्म का प्रचार-प्रसार किया था।

केवल ज्ञान के पश्चात तीर्थंकर पार्शवनाथ ने जैन धर्म के चार मुख्य व्रत – सत्य, अहिंसा, अस्तेय और अपरिग्रह की शिक्षा दी थी। अंत में अपना निर्वाणकाल समीप जानकर श्री सम्मेद शिखरजी (पारसनाथ की पहाड़ी जो झारखंड में है) पर चले गए जहाँ श्रावण शुक्ला सप्तमी को उन्हे मोक्ष की प्राप्ती हुई। भगवान पार्श्वनाथ की लोकव्यापकता का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि आज भी सभी तीर्थंकरों की मूर्तियों और चिह्नों में पार्श्वनाथ का चिह्न सबसे ज्यादा है। आज भी पार्श्वनाथ की कई चमत्कारिक मूर्तियाँ देश भर में विराजित है। जिनकी गाथा आज भी पुराने लोग सुनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि महात्मा बुद्ध के अधिकांश पूर्वज भी पार्श्वनाथ धर्म के अनुयायी थे।

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Author: undekhilive

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