जैन धर्मावलंबियों ने तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ का मोक्ष कल्याणक दिवस मोक्ष सप्तमी के रूप में मनाया

जैन धर्मावलंबियों ने तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ का मोक्ष कल्याणक दिवस मोक्ष सप्तमी के रूप में मनाया
मंदिरों में चढ़ाये गए निर्माण लाडू

पटना सहित सभी जगहों के जैन धर्मावलंबी तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ का मोक्ष कल्याणक दिवस मोक्ष सप्तमी के रूप में पूरी श्रद्धा के साथ मनाया। पटना के सभी जैन मंदिरों में भगवान का अभिषेक, पूजा के बाद निर्वाण लाडू चढ़ाए गए। पटना के कदमकुआं स्थित श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में मूलनायक भगवान पार्श्वनाथ की 108 कलशों से अभिषेक की गई और उसके बाद निर्वाण लाडू चढ़ाया गया। इसके साथ हीं पटना के मीठापुर, लंगूर गली स्थित गुरारा, मुरादपुर एवं नाला रोड चैत्यालय, कमलदह दिगम्बर जैन मंदिर सहित सभी दिगम्बर जैन मंदिरों में अभिषेक, पूजा एवं निर्वाण लाडू श्रद्धालुओं ने श्रद्धा एवं भक्ति के साथ चढ़ाया। जैन संघ के मीडिया प्रभारी एम पी जैन ने बताया कि मोक्ष सप्तमी जैन धर्म का एक प्रमुख पर्व है। इस पर्व को मुकुट सप्तमी पर्व भी कहा जाता है। इस दिन जैन धर्मावलंबियों के द्वारा भगवान पार्श्वनाथ का विशेष पूजन अर्चन, अभिषेक, विश्वशांति की कामना से महाशांतिधारा करके निर्वाण लाडू चढ़ाते है। यही प्राचीन परम्परा है एवं इस दिन भगवान पार्श्वनाथ विधान भी किया जाता है, जिससे लोगों के कुण्डलियों में कालसर्प का योग का निवारण भी हो जाता है। जैन धर्म के अनुसार इसी दिन तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ भगवान ने शाश्वत तीर्थ सम्मेद शिखर जी पारसनाथ के स्वर्णभद्र कूट से मोक्ष अर्थात् मुक्ति पद को प्राप्त किया था। यहां सम्मेदशिखर के स्वर्णभद्र कूट पर बहुत बड़ी संख्या में बिहार से जैन श्रद्धालु भक्तिपूर्वक निर्वाणलाडू चढ़ाने के लिए पहुंचते हैं। इसी कारण जैन धर्मावलंबी श्रवण शुक्ला सप्तमी के दिन मोक्षकल्याणक भक्ति व उत्सवपूर्वक मनाते हैं।
भगवान पार्श्वनाथ का जीवन दर्शन

एम पी जैन ने बताया की जैन शास्त्रों के अनुसार आज से लगभग 3000 वर्ष पूर्व उत्तर प्रदेश के वाराणसी में राजा अश्वसेन के घर महारानी वामादेवी की कोख से जैन धर्म के 23 वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ का जन्म हुआ था। ये बचपन से ही प्रतिभावान व्यक्तित्व के धनी थे। 30 वर्ष की आयु में उन्होने गृहत्याग कर जैनेश्वरी दीक्षा धारण कर ली तथा 83 दिन के कठोर तप करने के बाद केवल्यज्ञान प्राप्त किया और अहिंसामयी विश्वधर्म के पांच व्रत सत्य, अहिंसा, अचौर्य, ब्रहमचर्य और अपरिग्रह का उपदेश दिया। भगवान पार्श्वनाथ ने 70 वर्षों तक देश के विभिन्न भागों जैसे अयोध्या, राजगीर, कौशाम्बी, हस्तिनापुर में संसार के सभी प्राणीयों के कल्याण के लिये करूणामयी धर्म का मार्ग बताया और अंत में अपना निर्वाणकाल समीप जान श्री सम्मेदशिखर जी (मधुबन) की पहाड़ियों में अपने हजारों शिष्यों के साथ ध्यान मग्न हो गये और कुछ ही समय में वहीं से श्रावण शुक्ला सप्तमी के शुभ दिन मोक्ष प्राप्त किया। शास्त्रों के अनुसार इनकी उम्र 100 वर्ष थी और 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर के जन्म से 250 साल पहले इन्होंने निर्वाण को प्राप्त कर लिया था।
एम पी जैन ने बताया कि मोक्ष सप्तमी पर्व को मनाने का उदेश्य है कि तीर्थंकर पार्श्वनाथ भगवान के उपदेशों को, उनके अहिंसामयी सिद्धांतों को जन जन तक पहुंचाया जा सके। भगवान पार्श्वनाथ ने कहा था कि जिस कार्य को करने से किसी भी प्राणी को पीडा पहुंचे व प्राणों का घात हो, वह धर्म नही है। भगवान पार्श्वनाथ ने जीवों के कल्याण का मार्ग बताया है। भगवान पार्श्वनाथ के बताये मार्ग पर चलकर ही संसार के सभी प्राणी अपना और दूसरों का भी कल्याण कर सकते हैं। भगवान पार्श्वनाथ क्षमा के अवतार थे।

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Author: undekhilive

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