इच्छाओं का निरोध करना तप है

पर्युषण पर्व में आत्मा के दस स्वभाव पर कैसे विजय पाया जाए इसी को बताया जाता है। दस दिवसीय जैन पर्युषण पर्व के सातवें दिन तप धर्म की पूजा होती है. आज पटना के मीठापुर, कदमकुआँ, मुरादपुर, कमलदह मंदिर, गुलजार बाग सहित सभी दिगम्बर जैन मंदिरों में संयम धर्म की पूजा की गयी। सभी दिगम्बर जैन मंदिरों में सुबह से हीं पूजा करने हेतु श्रद्धालु मंदिरों में पहुँचने लगे। मंदिरों में श्रद्धालुओं ने भगवान् का अभिषेक किया एवं शांतिधारा के बाद मीठापुर दिगम्बर जैन मंदिर में तप धर्म की पूजा भोपाल से पधारे बाल ब्रह्मचारी सुमित भैया जी ने श्रद्धालुओं को कराई। ब्रह्मचारी सुमित भैया ने श्रावकों को तप धर्म के बारे में बताते हुए कहा कि जैन पर्युषण पर्व में आत्मा के दस स्वभाव पर कैसे विजय पाया जाए इसी को बताया जाता है। पर्युषण पर्व का सातवाँ दिवस ‘उत्तम तप ’ नामक दिवस है. ब्रह्मचारी सुमित भैया ने उत्तम तप धर्म के बारे में बताते हुए कहा कि उत्तम तप से मतलब है कि अपने आप को तपाना। इच्छाओं का निरोध करना तप है। तप द्वारा सांसारिक विषय भोगों की अभिलाषा से विरक्त हुआ जा सकता है। जिस प्रकार सोने को तपाने पर वह समस्त मैल छोड़कर शुद्ध हो जाता है और चमकने लगता है उसी प्रकार पांच इन्द्रियों एवं मन को वश में करना या बढ़ती हुई लालसाओं, इच्छाओं को रोकना तप है। जिस प्रकार अग्नि के बिना रसोई में भोजन नहीं बना सकते, उसी प्रकार उत्कट तपश्चर्या के बिना कर्मो का क्षय नहीं होता। दो तरह के मार्ग हैं। एक साधनों का मार्ग है और एक साधना का मार्ग है। साधनों का मार्ग सुख सुविधा का मार्ग है और साधना का मार्ग स्वतंत्र स्वाधीन तपश्चर्या का मार्ग है। भारतीय संस्कृति ने धर्म के लिए साधन संपन्न नहीं साधना संपन्न निरूपित किया है। एम पी जैन ने बताया कि उधर श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर कदमकुआं में भोपाल से पधारे पंडित डॉ शीतल जैन शास्त्री ने श्रद्धालुओं को तप धर्म के बारे में बताते हुए कहा कि सामान्य भाषा में तप का अर्थ शरीर को कष्ट देना, शरीर को कृष करना तथा अनेक प्रकार की पीड़ाएँ सहन करना है। यह तप का शारीरिक अथवा वाह्य पक्ष है। आत्मिक दृष्टि से तप आत्मा के दोषों को निर्मूल करके उसे निर्मल बनाना है। तप की आग में पूर्व के कर्मो का प्रज्ज्वलन हो जाता है तब आत्मा अपने शुद्ध चैतन्य स्वरूप में चमकती है। पंडित डॉ शीतल जैन शास्त्री जी ने श्रधालुओं से कहा कि तप का उद्देश्य समस्त कामनाओं का संवरण कर तृष्णा का निरोध तथा वासनाओं का हवन करना है। जो तप भौतिक सुखों की प्राप्ति लिए किया जाता है वह कुतप है। तप का व्यक्ति के मानसिकता के साथ गहरा सम्बन्ध है। तप व्यक्ति के विचारधाराओं को प्रभावित करता है। सृष्टि का आधार तप है। बिना साधना एवं तपस्या के कुछ प्राप्त नहीं होता। यहां भोग को नहीं योग को, त्याग को स्थान मिला है। तप आत्मशोधन का परम साधन है। अग्नि में तपने पर ही स्वर्ण में शुद्धता प्रकट होती है।
पंडित शीतल शास्त्री जी ने कहा कि इस प्रकार तप लौकिक दृष्टि से साधना में मन की एकाग्रता है, तो आध्यात्मिक दृष्टि से यह अग्नि है, जिसमे मन के कषाय (क्रोध,मान, माया, लोभ ) वासनाएं जल जाती है तथा आत्मा का शुद्ध चैतन्य स्वभाव प्रदीप्त हो उठता है। साधना और धर्म का मार्ग ही हमारे लिए कल्याण कराने वाला है। एमपी जैन ने बताया कि मंगलवार को दशलक्षण पर्व के आठवें दिन उत्तम त्याग धर्म की पूजा की जायेगी।

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Author: undekhilive

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