पटना। कदमकुआं स्थित श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर में जैन धर्मावलंबियों ने पूरे श्रद्धा और भक्ति भाव से भगवान संभवनाथ का तप कल्याणक महोत्सव मनाया। इस अवसर पर मंदिर परिसर भक्ति और आध्यात्मिकता से ओत-प्रोत हो गया। रविवार सुबह छह बजे से ही सैकड़ों श्रद्धालु मंदिर में जुटने लगे। कार्यक्रम का शुभारंभ भगवान संभवनाथ के अभिषेक और शांतिधारा से हुआ।
भगवान संभवनाथ के अभिषेक के बाद शांतिधारा का आयोजन एमपी जैन, निशांत जैन, और स्वेतांक जैन ने किया। शांतिधारा के दौरान मंत्रोच्चार और धार्मिक भजनों से वातावरण भक्तिमय हो गया। इसके उपरांत भगवान संभवनाथ की विशेष पूजा संपन्न हुई, जिसमें श्रद्धालुओं ने भाग लेकर अपनी भक्ति अर्पित की। शांतिधारा के बाद गीता जैन, एम.पी. जैन, निशांत जैन, और स्वेतांक जैन परिवार द्वारा विशेष शांति विधान का आयोजन किया गया। इस विधान में जैन धर्म के सिद्धांतों और भगवान संभवनाथ के तप और साधना की महिमा का गुणगान किया गया। विधान के दौरान विनोद पहाड़िया, ज्ञानचंद पाटनी, पंकज पांड्या जैन, धीरज जैन, अजित एडवोकेट, जिनेश जैन, अशोक छाबड़ा, मनोज बड़जात्या, और मीठापुर जैन समाज के अध्यक्ष विजय जैन गंगवाल सहित सैकड़ों श्रद्धालु उपस्थित थे। विधान के पश्चात महाप्रसाद का आयोजन किया गया, जिसकी व्यवस्था मुकेश जैन द्वारा की गई। महाप्रसाद में सभी श्रद्धालुओं ने सहभागिता की और धर्म-समाज की एकजुटता को बल दिया।
भगवान संभवनाथ का जीवन: प्रेरणा का स्रोत
भगवान संभवनाथ जैन धर्म के तृतीय तीर्थंकर हैं। उनका जन्म मार्गशीर्ष चतुर्दशी के दिन इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम जितारी और माता का नाम सुसेना था। भगवान संभवनाथ ने अपने जीवन में संयम, तप और साधना की मिसाल पेश की। उन्होंने कठोर तप के माध्यम से कर्मों का क्षय किया और मोक्ष प्राप्त किया। उनका जीवन सभी के लिए एक आदर्श है। उन्होंने न केवल आत्मकल्याण के पथ पर चलने का संदेश दिया, बल्कि समाज को अहिंसा, करुणा और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। जैन धर्म के सिद्धांतों का पालन कर उन्होंने दिखाया कि मोक्ष प्राप्ति के लिए तप, संयम और साधना का महत्व कितना गहरा है।
साहित्यिक और सांस्कृतिक दृष्टि से खास रहा आयोजन
भगवान संभवनाथ का तप कल्याणक केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक और साहित्यिक प्रेरणा भी है। जैन धर्म की गहरी परंपराएं और उसमें निहित जीवन मूल्यों का प्रसार ऐसे आयोजनों के माध्यम से होता है। शांतिधारा और शांति विधान जैसे कार्यक्रम हमें भौतिकता से परे जाकर आत्मचिंतन और अध्यात्म की ओर उन्मुख करते हैं।
आध्यात्मिकता का सजीव अनुभव
कदमकुआं के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर में हुए इस आयोजन ने श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक अनुभव का अवसर दिया। शांति विधान और महाप्रसाद जैसे आयोजनों के जरिए न केवल भगवान संभवनाथ के जीवन और सिद्धांतों को याद किया गया, बल्कि समाज में धर्म और संस्कृति की महत्ता को भी स्थापित किया गया। भगवान संभवनाथ का तप कल्याणक हमें यह सिखाता है कि आत्म-कल्याण का मार्ग आत्मसंयम और सत्कर्मों से होकर गुजरता है। उनका जीवन आज भी प्रेरणा का स्रोत है और इस तरह के आयोजन उनके सिद्धांतों को जीवंत बनाए रखने में सहायक हैं।