इच्छाओं का निरोध करना ही तप है- जैन मुनि आचार्य भद्रबाहु महाराज

पर्युषण पर्व का सातवां दिन

अनदेखी लाइव, पटना.

जैन धर्म में पर्युषण पर्व के सातवें दिन आज तप धर्म की पूजा की गयी. तप आत्मशोधन का परम साधन है। आज पटना के मीठापुर, कदमकुआँ, मुरादपुर, कमलदह मंदिर गुलजार बाग सहित सभी दिगम्बर जैन मंदिरों में तप धर्म की पूजा की गयी. सभी दिगम्बर जैन मंदिरों में सुबह से ही पूजा करने हेतु श्रद्धालु मंदिरों में पहुँचने लगे. मंदिरों में श्रद्धालुओं ने भगवान् का अभिषेक किया एवं शांतिधारा के बाद तप धर्म की पूजा की गयी.

जैन समाज के एम पी जैन ने बताया कि जैन मुनि आचार्य भद्रबाहु महाराज का कहना है कि उत्तम तप से मतलब है कि अपने आप को तपाना. इच्छाओं का निरोध करना ही तप है। तप द्वारा सांसारिक विषय-भोगों की अभिलाषा से विरक्त हुआ जा सकता है। जिस प्रकार सोने को तपाने पर वह समस्त मैल छोड़कर शुद्ध हो जाता है और चमकने लगता है उसी प्रकार पांच इन्द्रियों एवं मन को वश में करना या बढ़ती हुई लालसाओं, इच्छाओं को रोकना तप है। जिस प्रकार अग्नि के बिना रसोई में भोजन नहीं बना सकते, उसी प्रकार उत्कट तपश्चर्या के बिना कर्मो का क्षय नहीं होता। दो तरह के मार्ग हैं। एक साधन का मार्ग है और एक साधना का मार्ग है। साधन का मार्ग सुख सुविधा का मार्ग है और साधना का मार्ग स्वतंत्र स्वाधीन तपश्चर्या का मार्ग है। भारतीय संस्कृति ने धर्म के लिए साधन संपन्न नहीं साधना संपन्न निरूपित किया है। तप लौकिक दृष्टि से साधना में मन की एकाग्रता है, तो आध्यात्मिक दृष्टि से यह अग्नि है, जिसमे मन के कषाय (क्रोध, मान, माया, लोभ) वासनाएं जल जाती है तथा आत्मा का शुद्ध चैतन्य स्वभाव प्रदीप्त हो उठता है। साधना और धर्म का मार्ग ही हमारे लिए कल्याण कराने वाला है।

मुनि महाराज का कहना है कि सामान्य अर्थ में तप का अर्थ शरीर को कष्ट देना, शरीर को कृष करना तथा अनेक प्रकार की पीड़ाएँ सहन करना है। यह तप का शारीरिक अथवा बाह्य पक्ष है। आत्मिक दृष्टि से तप आत्मा के दोषों को निर्मूल करके उसे निर्मल बनाना है। तप का उद्देश्य समस्त कामनाओं का संवरण कर तृष्णा का निरोध तथा वासनाओं का हवन करना है। जो तप भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए किया जाता है वह कुतप है। तप का व्यक्ति के मानसिकता के साथ गहरा सम्बन्ध है। तप व्यक्ति की विचारधाराओं को प्रभावित करता है. सृष्टि का आधार तप है। बिना साधना एवं तपस्या के कुछ प्राप्त नहीं होता। यहां भोग को नहीं योग को, त्याग को स्थान मिला है।

श्री जैन ने बताया कि पर्युषण पर्व के आठवें दिन बुधवार को उत्तम त्याग धर्म की पूजा सभी मंदिरों में की जायेगी.

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Author: undekhilive

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