प्रेमचंद होम्बल एवं दल ने भरतनाट्यम और विशाल कृष्णा ने कत्थक की दी प्रस्तुति
आज राजधानी के भारतीय नृत्य कला मंदिर में अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस की पूर्व संध्या पर कला संस्कृति एवं युवा विभाग के द्वारा जश्न-ए-बिहार के तहत नृत्य संध्या का आयोजन किया गया । कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन कला संस्कृति एवं युवा विभाग की अपर मुख्य सचिव श्रीमती हरजोत कौर ने निदेशक, संस्कृति, श्रीमती रूबी , उप सचिव, अनिल कुमार सिन्हा एवं अन्य गणमान्य अतिथियों की उपस्थिति में दीप प्रज्वलित कर किया ।
श्रीमती हरजोत कौर ने विश्व नृत्य दिवस की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि हम लोग विश्व नृत्य दिवस की पूर्व संध्या पर नृत्य संध्या का आयोजन कर रहे हैं । विश्व नृत्य दिवस को विशेष रूप से नृत्य कला के महत्व को जागरूक करने और लोगों को नृत्य कला की महत्ता को समझाने के लिए मनाया जाता है । भारतीय नृत्य कला मंदिर की स्थापना ही इसीलिए की गई थी कि भारतीय नृत्य संस्कृति को बढ़ावा मिले और हम लोगों की जो आगे की पीढ़ियां है बिहार के बच्चे और बिहार के युवा वो इस संस्कृति को आगे बढ़ा सके । यहां पर नृत्य और संगीत की कक्षाएं होती हैं और बहुत से गुनी गुरुजन यहां पर बच्चों, युवाओं को संगीत की शिक्षा देते हैं ।
कार्यक्रम की शुरुआत प्रसिद्ध कत्थक नृतक और बनारस घराने के 11 वीं पीढ़ी के कलाकार विशाल कृष्णा की कत्थक प्रस्तुति से हुई । शिव स्तुति से अपनी प्रस्तुति शुरू करने के बाद विशाल कृष्णा ने तीन ताल सोलह मात्रा की प्रस्तुति तबले के उठान से शुरू की । उसके बाद उन्होंने “तीन था थई”, दादरा जिसके बोल थे “कन्हैया जी ये कैसा जादू डाला” की प्रस्तुति दी । उन्होंने अपने नृत्य प्रस्तुति की समाप्ति “ थाली” नृत्य से की जिसने दर्शकों को सम्मोहित कर दिया । उनके साथ तबला पर आनंद मिश्रा, सितार पर नीरज मिश्रा एवं वोकल में संतोष मिश्रा ने संगत किया ।
कत्थक की प्रस्तुति के बाद प्रो प्रेमचंद होम्बल एवं दल की भरतनाट्यम की प्रस्तुति हुई । भारतीय नृत्य कला मंदिर से जुड़ीं अपने यादों को साझा करते हुए श्री होम्बल ने कहा कि मैंने पदमश्री हरी उप्पल जी की पुत्री स्टेला जी के साथ इसी मंच पर 1976 में “सीता स्वयंवर” की प्रस्तुति दी थी आज एक बार फिर मुझे यहाँ प्रस्तुति देने का मौका मिला है ।
कार्यक्रम का आरंभ पारम्परिक अंग “अलारिपु” से किया गया , जो नृत्त के अन्तर्गत आता है । यह ताल तिम्र एकम् में निबद्ध है । जिसकी प्रस्तुति श्रीमती ईशा नागर सेठ, मुश्री रूपम् रघुवंशी एवं श्रीमती माला होम्बल, सुश्री जागृति, सुश्री जाहनवी श्रीवास्तव, सुश्री युविका जौहरी,एवं सुश्री निवेदिता पाण्डेय ने दी । इस दौरान जतिस्वरम्” जो नृत्य प्रधान प्रस्तुति है एवं राग सरस्वती और ताल रूपकम् में निवद्ध है उसकी प्रस्तुति हुई । तृतीय प्रस्तुति संत कवि सूरदास का प्रसिद्ध पद – “जसोदा हरि पालने झुलावै” की प्रस्तुति श्रीमती माला होम्बल के द्वारा दी गईं । संत कवि तुलसीदास द्वारा रचित गणेश स्तुति – “गाइये गणपति जग बन्दन को, “श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन” की भावमय प्रस्तुति दी गई ।” अंत में संत कवि तुलसीदास द्वारा रचित कवितावली” से वन-गमन प्रसंग का प्रस्तुतिकरन हुआ । कार्यक्रम के अंत में कला संस्कृति एवं युवा विभाग की अपर मुख्य सचिव श्रीमती हरजोत कौर ने सभी कलाकरों को अंगवस्त्र एवं प्रतिकचिह्न देकर सम्मानित किया ।