पटना। विद्यापति भवन में रविवार को सुबह से ही गहमागहमी रही। रामचरितमानस पर उपजे विवाद पर मंथन करने के लिए महावीर मंदिर की ओर से विद्वत गोष्ठी आयोजित की गई थी। इसमें रविवार को 10 विद्वानों ने अपना पक्ष रखा। रामचरितमानस के पक्ष और विपक्ष में अपने तथ्यपरक विचार रखने के लिए विद्वानों को इसमें आमंत्रित किया गया था। हालांकि रामचरितमानस के विपक्ष में बोलने के लिए इस गोष्ठी में कोई नहीं आया। गोष्ठी का विषय ‘सामाजिक सद्भाव के प्रवर्तक गोस्वामी तुलसीदास’ रखा गया था। इस विद्वत गोष्ठी में मानस के बारे में लोगों को और जानकारी देने के लिए रामचरितमानस व गोस्वामी तुलसीदास पर राष्ट्रीय सेमिनार करने का निर्णय लिया गया। महावीर मंदिर इसका आयोजन करेगा। जल्द ही इसकी तिथि की घोषणा की जाएगी।
गोष्ठी में महावीर मंदिर न्यास के सचिव आचार्य किशोर कुणाल ने रामचरितमानस को लेकर होने वाले विवादों के बारे में उन प्रसंगों की विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि रामचरित मानस और गोस्वामी तुलसीदास के संबंध में प्रसंग से हटकर कुछ भी उठाने पर अर्थ का अनर्थ निकलेगा। फिर उन्होंने रामचरित मानस में सामाजिक सद्भाव से जुड़े कई प्रसंगों का वर्णन किया। कहा कि तुलसीदास एक विरक्त महात्मा थे। उनको किसी पक्ष से कोई मतलब नहीं था। गोस्वामी तुलसीदास और रामचरितमानस पर महावीर मंदिर राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित करेगा। इसकी तारीख और कार्यक्रम की रूपरेखा की जल्द घोषणा होगी। वक्ताओं में डॉ. जगनारायण चौरसिया, विजय श्री, दयाशंकर राय और डॉ. त्रिपुरारी पांडेय शामिल रहे।
रामचरितमानस में भरी है मानवता
विद्वत गोष्ठी में वक्ता सोनेलाल बैठा ने कहा कि रामचरितमानस में मानवता कूट-कूट कर भरी हुई है। इसको जानने-समझने के लिए अध्ययन और मनन-चिंतन की आवश्यकता है। रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. कृष्ण कुमार ने कहा कि रामचरितमानस जोड़ने वाला ग्रन्थ है। व्याकरणाचार्य डॉ. सुदर्शन श्रीनिवास शांडिल्य ने कहा कि रामचरितमानस में ढोल गंवार….चौपाई में ताड़ने का अर्थ संवारना है। पूर्व आईएएस अधिकारी राधाकिशोर झा ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से सभी को भगवद भाव से देखा है। बाबूलाल मधुकर ने सनातन धर्मावलंबियों को रामचरित मानस और गोस्वामी तुलसीदास के संबंध में किसी भी तरह की भ्रांति और बहकावे में नहीं आने की अपील की।
समाज निखारने की है क्षमता
विद्वत गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) राजेन्द्र प्रसाद ने कहा कि रामचरित मानस में समाज में सुधार और निखार लाने की क्षमता है। महावीर मंदिर पत्रिका धर्मायण के संपादक पं. भवनाथ झा ने कहा कि किसी ग्रंथ के शब्दों का सही अर्थ जानने के लिए उस पंक्ति के पहले और बाद की पंक्तियों को पढ़ना आवश्यक है। धन्यवाद ज्ञापन पूर्व विधि सचिव वासुदेव राम व मंच संचालन प्राणशंकर मजूमदार ने किया।
गोस्वामीजी ने संसार को सियाराममय बताया
आचार्य किशोर कुणाल ने कहा कि संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास ने संसार को सियाराममय बताया है। उन्होंने रामचरितमानस में निषादराज, केवट, माता शबरी आदि को जो उच्च स्थान दिया है, वह अद्वितीय है। जब भरत जी निषादराज से मिलते हैं तो उन्हें भ्राता लक्षमण जैसा स्नेह करते हैं। गुरु वशिष्ठ भी निषादराज से उसी भाव से मिलते हैं। शबरी के जूठे बेर श्रीराम को इतने प्रिय लगे कि नाते-रिश्तेदारी में भी वे इसका बखान किए फिरते थे। मनुष्य जाति से अलग पक्षियों में निम्न समझे जाने वाले गिद्ध जटायु का अंतिम संस्कार श्रीराम ने अपने परिजन की तरह किया। रामचरितमानस के ऐसे प्रसंग गोस्वामी तुलसीदास को समदर्शी महात्मा के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं। अंत में शंका समाधान सत्र में श्रोताओं की जिज्ञासाओं और प्रश्नों के उत्तर दिए गए।
