अपने स्थापना दिवस के अवसर पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना ने दिनांक 22 फरवरी 2024 को “प्राकृतिक कृषि एवं जनजातीय कृषि प्रणाली में टिकाऊपन” विषय पर जनजातीय कृषक सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. पी. एस. पाण्डेय, माननीय कुलपति, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय की गरिमामयी उपस्थिति रही | कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर डॉ. बिकाश दास, निदेशक, राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र, मुजफ्फरपुर एवं डॉ. ए. के. सिंह, प्रमुख, कृषि प्रणाली का पहाड़ी एवं पठारी अनुसंधान केंद्र रहे |
मुख्य अतिथि डॉ. पी. एस. पाण्डेय ने अपने संबोधन में संस्थान के सभी कर्मियों को स्थापना दिवस की शुभकामनाएं दी एवं इसकी उपलब्धियों की भी प्रशंसा की | उन्होंने बताया कि अनुसूचित जनजाति उप परियोजना का उपयोग जनजातीय किसानों के उत्थान के लिए किया जाना चाहिए ताकि उनकी परंपरा और संस्कृति का संरक्षण हो सके | उन्होंने कुपोषण को दूर करने के लिए फोर्टिफाइड अनाज, फसल विविधीकरण एवं प्राकृतिक कृषि स्रोतों का संरक्षण पर बल दिया | साथ ही साथ, कृषक संगठन (एफपीओ) को बाजार से जोड़ने के विषय पर भी जोर दिया जिससे कि किसानों के उत्पाद को उचित दाम मिल सके |
डॉ. बिकास दास ने बताया कि समेकित कृषि प्रणाली मॉडल को जनजातीय किसानों की आवश्यकताओं को देखते हुए विकसित करने की आवश्यकता है, जिससे कि प्राकृतिक संसाधन को संरक्षित किया जा सके | साथ ही उन्होंने जनजातीय कृषकों की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखने की आवश्यकता पर बल दिया |
इससे पहले संस्थान के निदेशक डॉ. अनुप दास ने संस्थान के विगत वर्षों में हुए कार्यों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया, जिसमें समेकित कृषि प्रणाली, संरक्षण कृषि, प्राकृतिक कृषि, धान परती भूमि प्रबंधन एवं कृषि में ड्रोन तकनीक के उपयोग के बारे जानकारी दी गई |
आदिवासी किसानों द्वारा जनजातीय नृत्य इस कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण रहा | इस कार्यक्रम में झारखंड के आदिवासी किसानों द्वारा संथाली (छोटा नागपुरी) नृत्य, बक्सर के महारानी दुर्गावती गोंड आदिवासी कृषक स्वयं सहायता समूह द्वारा हुड़का नृत्य एवं पुरुलिया के आदिवासी किसानों द्वारा पाता नृत्य जनजातीय संस्कृति की प्रस्तुति की गई |
सात अलग-अलग राज्यों से आये किसानों ने प्रक्षेत्र भ्रमण भी किया एवं नई तकनीकों की जानकारी प्रदर्शनी द्वारा प्राप्त की | कार्यक्रम में संस्थान के द्वारा हिंदी में लिखित मत्स्य पालन से संबंधित दो पुस्तिकाओं का भी विमोचन किया गया एवं पूर्वी भारत के सात राज्यों से आये किसानों को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया |