पटना जैन समाज के एम पी जैन ने बताया कि भगवान महावीर जन्मभूमि वासोकुण्ड, वैशाली, बिहार में 51 फुट ऊँचे मानस्तंभ निर्माण के लिए प्रतिष्ठाचार्य पं. अशोक गोयल शास्त्री (दिल्ली) द्वारा धार्मिक क्रियाओं व विधिपूर्वक नींव रखी गई।
प्रतिष्ठाचार्य ने कहा कि मंदिरों में मानस्तंभ बनाने का उद्देश्य होता है कि मंदिर में प्रवेश के पूर्व मानस्तंभ देखकर श्रावक का मान समाप्त हो जाए। मंदिर में प्रवेश समर्पण, श्रद्धा, आस्था के भावों को लेकर करना चाहिए। अपने अहंकार, मान, कषाय आदि को मंदिर के बाहर छोड़कर मंदिर में प्रवेश करना चाहिए। जैन समाज के विचार से एक आदर्श समाज और राष्ट्र की परिकल्पना संभव है। वैशाली में प्राचीन प्रजातंत्र स्थापित था, यहाँ सुदृढ़ और सुसंगठित शासन व्यवस्था थी, जिससे आज भी हमें प्रेरणा मिलती है। गौरव की बात है कि वैशाली विश्व में प्रथम प्रजातंत्र की जननी है।
समिति के मुख्य संरक्षक साहू श्री अखिलेश जैन ने कहा- मन्दिर में प्रवेश हमेशा श्रद्धा एवं समर्पण के साथ होना चाहिए। मन्दिर में अहंकार की कोई जगह नहीं होती है। अध्यक्ष श्री राजकुमार जैन ने बताया- मंदिरों में शुद्ध मन से लोगों को आना चाहिए खासकर नई पीढ़ी को धर्म के अनुकूल आचरण करने की जरूरत है। कार्याध्यक्ष श्री मुकेश कुमार जैन ने कहा पंचशील के जिन पाँच सिद्धांतों को जैनधर्म के 24वें तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी ने प्रतिपादित किया वो आज भी इस वैज्ञानिक युग में प्रासंगिक है। जैनधर्म जीने की कला है। इसके सिद्धान्त बड़े ही वैज्ञानिक और व्यावहारिक हैं। महामंत्री श्री सतीश चन्द जैन ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा- जैन सिद्धान्त को अपना कर पूरे विश्व में आतंकवाद और पर्यावरण जैसे गंभीर समस्या को दूर किया जा सकता है। यह गौरव की बात है कि बिहार के प्राचीन वैशाली के वासोकुण्ड गाँव में भगवान महावीर स्वामी का जन्म हुआ।
श्री राकेश कुमार जैन (कोषाध्यक्ष व निर्माण) एवं श्री राकेश जैन (अध्यक्ष अर्थव्यवस्था व निर्माण) दोनों का मन्दिरजी में हो रहे निर्माण कार्यों में समिति को अतुलनीय योगदान मिल रहा है।
इस अवसर पर राजधानी दिल्ली तथा देश के उपनगरों से अनेकों गणमान्य महानुभाव उपस्थित हुए जिनमें से कुछ निम्न हैं- श्री नरेश जैन (वरिष्ठ उपाध्यक्ष), श्री राजेन्द्र जैन ‘सघपति’ (मन्त्री मन्दिर व्यवस्था) व श्री अक्षय कुमार जैन (आर्किटेक्ट), श्री सुरेन्द्र गंगवाल ( मीठापुर), श्री रविन्द्र जी आदि ।