श्रीगुरुनानक देव जी महाराज ने चार उदासियां(यात्राएं) कीं। पहली यात्रा पूरब की थी। इसी दौरान वे गया होते राजगीर पधारे।
सरदार गुरुदयाल सिंह
श्री गुरु नानक देव जी महाराज ने अपने जीवन काल में उत्तर भारत से लेकर सुदूर दक्षिण भारत एवं भारत की सीमाओं से पार इराक तक हजारों मील पैदल चलकर अनेक धार्मिक यात्राएं कीं। लोगों को मानवता से प्यार करना सिखाया। उन्होंने न केवल सदियों से पंडित, मुल्लाओं एवं धर्म के ठेकेदारों द्वारा समाज पर थोपे पाखंड, अंधविश्वास और कुरीतियों एवं बुराइयों के चक्रव्यूह को भेदा, बल्कि दबे- कुचले, समाज से तिरस्कृत लोगों को भी गले लगाया। सबों की भलाई के लिए काम करने का संदेश दिया। कीरत करना (अपने हाथों से उपार्जन करना), नाम जपना और वंड छकना (मिल बांट कर खाना) के सरल मंत्र से लोगों में एक नई चेतना पैदा कर दी। साथ ही सहज एवं सरल तरीके से प्रभु सिमरन में जुड़ने की राह दिखाई।
एक ओमकार सतनाम करता पुरखु,
निरभउ निरवैरु अकाल मूरति
अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥
इस मूल मंत्र द्वारा ईश्वर एक ही है का नारा बुलंद किया।
चार उदासियां- पहली उदासी में बिहार आए
उन्होंने अपने जीवन काल में चार धार्मिक यात्राएं कीं, जिसे सिख धर्मावलंबी उदासियां कहते हैं। पहली उदासी उन्होंने दो शिष्यों- बाला (हिंदू) और मर्दाना (मुस्लिम) के साथ पूर्व दिशा की ओर प्रारंभ की। इन्होंने यह यात्रा 1507 के अगस्त महीने में संभवतः 30 तारीख को शुरू की और सन 1515 के नवंबर के अंत में वापस आए। इस प्रकार उनकी पहली उदासी साढ़े आठ वर्ष की थी, जिस दौरान वे लगातार पैदल यूपी, बिहार से असम तक की भ्रमण करते रहे।
गुरु नानक जी जहां भी अपनी बात कहते पूरे जन समूह में कहते और उदाहरण देकर जन समूह में अपने कहे वाक्यों को लोगों के हृदय में पहुंचा देते। अधिकांशतः उनकी यात्राएं बड़े-बड़े धार्मिक स्थलों, मंदिरों, मस्जिदों एवं धार्मिक उत्सव में उपस्थित जनसमूह, सिद्ध, योगियों, मठाधीश और साधु-संतों के बीच वार्तालाप से शुरू होती, क्योंकि उनका एक ही उद्देश्य था नानक नाम चढ़दी कला तेरे माने सरबत का भला। इसी पहली उदासी के क्रम में वह बिहार की धार्मिक नगरी गया से होते हुए राजगीर पधारे।
कहते हैं उस समय मलमास मेले की शुरुआत हो चुकी थी। अनेक सूफी संतों, जैन मुनियों तथा साधु-संतों तथा विभिन्न गांवों शहरों से जन समूह की भीड़ इकट्ठी थी। जल के भीषण संकट से जनता जूझ रही थी। सभी और गर्म जल के ही कुंड थे। शीतल जल का नामोनिशान नहीं था। गुरु जी ने वहां अपना आसन लगाया, तो लोगों ने उन से विनती की। महाराज हमें ठंडा जल उपलब्ध कराया जाए। गुरुजी ने अपने शिष्यों को एक पत्थर नीचे से हटाने को कहा। जैसे ही पत्थर हटा वहां निर्मल ठंडे जल का स्रोत फूट पड़ा। इस शीतल कुंड में आज भी ठंडे जल का निर्मल प्रवाह चल रहा है। इसी स्थल पर से सिख अनुयायियों द्वारा गुरु नानक जी की यात्रा की याद में शीतल कुंड नाम से भव्य गुरुद्वारा बना है।
श्रद्धालु श्रद्धा भाव से राजगीर आते हैं और ठंडे जल का सेवन कर प्रसाद के रूप में भी ले जाते हैं। गुरुद्वारा तख्त श्री हरमंदिर जी पटना साहिब की प्रबंधक कमेटी के संरक्षण में बसों- टैक्सियों तथा अपनी सवारियों से सैकड़ों लोग प्रतिदिन राजगीर शीतल कुंड गुरुद्वारा दर्शन करने जाते हैं।
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