लोभ पर विजय प्राप्त करना ही शौच धर्म कहलाता है

जैन पर्युषण पर्व का चौथा दिन

अनदेखी लाइव, पटना.

दस दिवसीय जैन पर्युषण पर्व के चौथे दिन शौच धर्म की पूजा होती है. आज पटना के मीठापुर, कदमकुआँ, मुरादपुर, कमलदह मंदिर गुलजार बाग सहित सभी दिगम्बर जैन मंदिरों में शौच धर्म की पूजा की गयी. सभी दिगम्बर जैन मंदिरों में सुबह से ही पूजा करने हेतु श्रद्धालु मंदिरों में पहुँचने लगे थे. मंदिरों में श्रद्धालुओं ने भगवान् का अभिषेक किया एवं शांतिधारा के बाद शौच धर्म की पूजा की.

जैन समाज के एम पी जैन ने बताया कि  दिगम्बर जैन महामुनि आचार्य प्रसन्न सागरजी महाराज ने बताया है कि जो अनन्त सुख तक साथ दे उसका दामन थामना ही उत्तम शौच धर्म है….!!! 84 लाख योनियों में सिर्फ एक मानव है जो धन कमाता है। अन्य कोई भी जीव बिना धन कमाये आज तक ना भूखा सोया ना भूखा मरा। सिर्फ एक मानव है जो पैदा होने के बाद से आज तक न तो पेट भर पाया, ना ही पेटी। इस लोभवृत्ति से मुक्त होने के लिये सन्तोष का मार्ग है- उत्तम शौच।’ सन्तोषी दरिद्र होने के बाद भी सुखी है और लोभी समृद्ध होने के बाद भी दुखी और परेशान है। हमें दुःख में से सुख खोजकर जीना है। दुःख में सुख खोज लेना भी एक कला है। बड़े से बड़े दुखों में भी छोटे छोटे सुख के सूत्र छुपे होते हैं। उन्हीं सुखों को पकड़कर यदि मनुष्य ज़िन्दगी जीता है, तो जिन्दगी भर सुख, शान्ति, आनंद, प्रेम का अमृत बरसता है। उन्होंने कहा कि मैं धन का विरोधी नहीं हूँ, धन होना चाहिए लेकिन सिर्फ धन के लिए जीवन नहीं गंवाना चाहिए। जिन्दगी में धन कुछ हो सकता है – बहुत कुछ हो सकता है लेकिन धन सब कुछ नहीं हो सकता। जैसे जैसे धन बढ़ता है वैसे वैसे भोग विलासिता के संसाधन हमारे अमन-चैन के जीवन को उजाड़ कर ना सिर्फ वीरान बना देते हैं, अपितु दर्द भरा जीवन जीने के लिए विवश भी कर देते हैं। उत्तम शौच के अभाव में आदमी की अच्छी खासी जिन्दगी भोग विलास, ऐशो आराम से केवल पतनोन्मुखी बनती है। इसलिए जीवन को उन्नत समुन्नत बनाने के लिये सिर्फ धन नहीं, साथ में धर्म की भी आवश्यकता है। सौ बात की एक बात – कितना भी धन कमा लो और धन जोड़ लो – साथ कुछ भी नहीं जायेगा।

जैन मुनि आचार्य रत्न विशुद्ध सागर जी महाराज का शौच धर्म के सम्बन्ध में कहना है कि आकांक्षा, इच्छा मानवता के लिए बहुत बड़ा विष हैं. इच्छाओं की लता इतनी लम्बी होती है कि उसको जितना बड़ा वृक्ष मिल जाए उतना ऊपर चढ़ते चली जायेगी. जो लता वृक्ष पर चढ़ती है, वह एक छोटे से बीज से प्रारम्भ होती हैं और धीरे धीरे वृक्ष के उपरी छोर तक पहुँच जाती है वह और भी ऊपर चढ़ना चाहती है. वैसे ही मनुष्य की इच्छाएं भी बढ़ती जाती है. आशा की लता ने सबको जकड़ लिया है. महाराज श्री का कहना है कि इतना कमाओ कि स्वयं का पेट भरता रहे और साधू दरवाजे से भूखा न जाए. किसी भी वस्तु का लोभ या लालच नहीं होना चाहिए. दिगम्बर जैन साधू के पास पिच्छि कमंडल और जिनवानी के अतिरिक्त कुछ भी नहीं होता है.तन को शुद्ध करना अलग बात है किंतु संतोष के जल से मन और जीवन को शुद्ध करना आज के शौचधर्म का सार है। अतः शौच धर्म का  पालन कर हमें अपनी आत्मा को निर्मल बनाना चाहिय। आत्मा का सहज स्वभाव ही उसका धर्म होता है। आत्मा को निर्मल ,पवित्र एवं शुद्ध बनाने की प्रेरणा उत्तम शौच धर्म देता है। शौच का अर्थ शरीर की शुद्धता नहीं बल्कि आत्मा की शुद्धता होती  है। श्री जैन ने बताया कि पर्युषण पर्व के पांचवें दिन रविवार को उत्तम सत्य धर्म की पूजा होगी.

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Author: undekhilive

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