सम्यक न्यूज़, पटना.
माननीय सुप्रीम कोर्ट का वर्षों पुराना आदेश है कि किसी भी घटना की प्राथमिकी (F.I.R) किसी भी पुलिस थाने में दर्ज कराई जा सकती है. भले ही वह ZERO F.I.R ही क्यों न हो. कोई भी पुलिस अधिकारी इससे इन्कार नहीं कर सकता है. यह आदेश आम जनता के लिए बहुत मायने रखता है, वह अपने आप को कानून से संरक्षण का हक़दार समझता है. मगर जब कानून के रक्षक ही सुप्रीम आदेश की ऐसी-तैसी करने लगें तो आम जनता का विश्वास डोलने लगता है.
ताज़ा मामला पटना के एक दैनिक अखबार के पत्रकार राजदेव पांडे का है जिनसे हथियार के बल पर लूट हो गयी और F.I.R थाना के क्षेत्राधिकार विवाद में दर्ज नहीं हो सकी. प्राप्त जानकारी के अनुसार गुरुवार की सुबह पटना के एक दैनिक अखबार के पत्रकार राजदेव पांडे अपनी पत्नी के साथ बाइक से जेपी सेतु होते हुए सोनपुर के हरिहरनाथ मंदिर से दर्शन करने के बाद पटना लौट रहे थे. इसी दौरान पुल पर दो अपराधियों ने उन्हें रोक लिया और उनके सामने पिस्तौल तान दी. अपराधियों ने उनकी पत्नी के गले से सोने की चेन भी छीन ली. गनीमत यह रही कि गुंडों ने उनकी मोटरसाइकिल छोड़ दी अन्यथा वे थाने पहुंचने लायक भी नहीं रहते.
इस घटना की शिकायत करने जब वह सोनपुर थाना पहुंचे तो पुलिसवालों ने कहा की यह मामला दीघा थाना का है. वहीं दीघा पुलिस थाना ने भी सोनपुर थाना का मामला बताते हुए शिकायत दर्ज करने से मना कर दिया. खबर लिखे जाने तक किसी भी थाने में प्राथमिकी दर्ज नहीं हो सकी है. सवाल यह उठता है कि एक डरा हुआ, परेशान आदमी जब शिकायत दर्ज कराने पुलिस थाने पहुंचा तो उसे कानूनी संरक्षण क्यों नहीं मिला? क्या यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनादर नहीं है? यदि पुलिस घटनास्थल विवाद को किनारे रख ZERO F.I.R ही दर्ज कर लेती तो कौन सी आफत आ जाती? किसी पीड़ित व्यक्ति को तो तत्काल कानूनी मदद हो जाती जो पुलिस का प्राथमिक दायित्व है.
इस सम्बन्ध में पटना हाई कोर्ट के काबिल अधिवक्ता डॉ. कौशलेन्द्र नारायण कहते हैं कि भारतीय दंड विधान (I.P.C) की धारा 154 के तहत किसी भी घटना की प्राथमिकी (F.I.R) किसी भी पुलिस थाने में दर्ज कराई जा सकती है. भले ही वह ZERO F.I.R ही क्यों न हो. कोई भी पुलिस अधिकारी इससे इन्कार नहीं कर सकता है. यह मायने नहीं रखता है कि क्राइम जहाँ हुआ है, वह किस थाना के क्षेत्राधिकार में आता है या प्राथमिकी दर्ज करानेवाला व्यक्ति उस थाना क्षेत्र का रहनेवाला है या नहीं. लेकिन, पुलिस अक्सर कागज़ी खानापूर्ति के चक्कर में और केस की संख्या कम रखने के लिए घटनास्थल विवाद का बहाना बना देती है जो सरासर गलत है. यह विवाद रेल क्षेत्र, नदी क्षेत्र, अंतर जिला और अंतर राज्यीय क्षेत्र में खूब होता है. पुलिस की ये ड्यूटी है कि यदि उसके पास कोई फरियादी आता है तो उसकी तत्काल फरियाद सुनी जाये और उसे भय या असुरक्षा के दायरे से बाहर निकाले. यदि ऐसा नहीं होता है तो यह जनता के कानूनी अधिकारों का उपहास उड़ाने जैसा है और इसके खिलाफ कोई भी पीड़ित व्यक्ति न्यायालय की शरण ले सकता है.
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