अहंकार पर विजय प्राप्त करने की कला है मार्दव धर्म

अनदेखी लाइव, पटना.

दस दिवसीय जैन पर्युषण पर्व के दूसरे दिन मार्दव धर्म की पूजा होती है. आज पटना के मीठापुर, कदमकुआँ, मुरादपुर, कमलदह मंदिर गुलजार बाग सहित सभी दिगम्बर जैन मंदिरों में क्षमा धर्म की पूजा की गयी. सभी दिगम्बर जैन मंदिरों में सुबह से हीं पूजा करने हेतु श्रद्धालु मंदिरों में पहुँचने लगे. मंदिरों में श्रद्धालुओं ने भगवान् का अभिषेक किया एवं शांतिधारा के बाद मार्दव धर्म की पूजा की. जैन पर्युषण पर्व में आत्मा के दस स्वभाव पर कैसे विजय पाया जाए, इसी को बताया जाता है। पर्युषण पर्व का द्वितीय दिवस ‘उत्तम मार्दव’ नामक दिवस है जो  अहंकार पर विजय प्राप्त करने की कला को समझने एवं सीखने का दिन  होता है। जैन मुनि प्रमाण सागर जी  महाराज का कहना है कि मान क्या है? अपने आपको कुछ विशेष मानने की आकांक्षा का नाम मान है। 

मैं बड़ा हूं, अमीर हूं, ज्ञानवान हूँ, ऊंचे कुल का हूं, सुंदर हूं,  मेरे पास अपार धन है- यही मान है. मुनिश्री का कहना है अपने आप को विशेष रूप से मुक्त रखिए। आज आप जिसके लिए मान कर रहे हैं कल उनका ठिकाना नहीं रह सकता है। अतः मान किसी चीज का मान या घमंड नही करें। आठ प्रकार के मान निम्नलिखित हैं-जाति, कुल, बल, ऐश्वर्य, रूप, तप, विद्या और धन इनका कभी मान नहीं करना चाहिए यह समय के साथ नष्ट हो जाती है।

श्रद्धालु एम पी जैन ने कहा कि अहंकार पर विजय पाना ही मार्दव धर्म है. व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है कि वह अहंकार का त्याग कर दूसरों के प्रति विनम्रता के साथ मृदुता का आचरण करे। साधारण दृष्टि से मार्दव का अर्थ है मृदु ,शिष्ट एवं विनम्र व्यहार। बहुत से लोग ऊपर से तो कठोर होते हैं लेकिन भीतर से काफी विनम्र स्वभाव के होते हैं जैसे नारियल ऊपर से तो कठोर होता है लेकिन अन्दर से मुलायम एवं मीठा होता है. हमें मुलायम एवं मीठा बोलने वाला होना चाहिए. जैन मुनि भद्रबाहु महाराज का कहना है कि आजकल लोग अपने बच्चों का सार्थक नाम नहीं रखते है जिससे उनपर सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है. मुनिश्री का कहना है कि देव-शास्त्र गुरु की अवहेलना कभी नहीं करनी चाहिये. उनका सम्मान करना करना आपका अपना सम्मान है .

मृदु का भाव मार्दव है। यह मार्दव मान शत्रु का मर्दन करने वाला है। हमें जीवन में मार्दव धर्म से शिक्षा मिलती है कि जीवन में कभी भी किसी भी वस्तु का मान नहीं करना चाहिए। मान करने वाला व्यक्ति दुर्गति को प्राप्त करता है। रावण ने मान के वशीभूत होके अपना ही नहीं, पूरे वंश का नाश कर लिया। मान करने वाला व्यक्ति दुर्गति में जाता है एवं तिर्यंच गति को प्राप्त करता है। चक्र रत्न को धारण करने वाले भरत चक्रवर्ती भी वृषभाचल पर्वत को देखते हैं. पुनः उस पर से अक्षर को मिटाकर अपनी प्रशस्ति लिखते हैं. एम पी जैन ने बताया की कल पर्युषण के तीसरे दिन मंदिरों में आर्जव धाम की पूजा कराई जायेगी.

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Author: undekhilive

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