जैन धर्मावलंबियों ने अक्षय तृतीया पर भगवान आदिनाथ की पूजा अर्चना की तथा लोगों को गन्ने का रस पिलाया। आज सुबह से सभी जैन मंदिरों में भगवान आदिनाथ की पूजा अर्चना की गई। पटना के मीठापुर, मुरादपुर, कदमकुआं, कमलदह एवं अन्य मंदिरों में पूजा अर्चना की गई। मीठापुर में शांतिधारा हीरालाल जी पांड्या परिवार ने किया। कदमकुआं जैन मंदिर में आज अक्षय तृतीया की पावन पर्व पर पारसनाथ दिगंबर जैन महिला मंडल ने मंदिर के बाहर निःशुल्क भोजनशाला लगाई और 300 से अधिक लोगों को गन्ने का रस पिलाया ,जैन मंदिर के साथ-साथ बुद्ध मूर्ति के पास भी गन्ना का जूस छोटे-छोटे बच्चों को पिलाया। जूस पीकर बच्चे बहुत ही खुश नजर आ रहे थे और सब ने आदिनाथ भगवान की जयकारे भी लगाये. कार्यक्रम में अर्चना जैन, डॉ गीता जैन, मीता जैन, ऋचा जैन, अंजलि जैन, डॉक्टर प्रियंका जैन, महिला मंडल के अध्यक्ष श्रीमती सरला जैन तथा अन्य ने भागीदारी की।
कमलदह एवं मुरादपुर जैन मंदिरों में भगवान की शांतिधारा की गई। बिहार दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमिटी के सचिव पराग जैन ने बताया कि राजगीर तीर्थ क्षेत्र मंदिर में भगवान आदिनाथ की पूजा अर्चना की गई तथा सभी को इच्छु रस पिलाया गया।
जैन धर्म मे अक्षय तृतीया का इतिहास
एम पी जैन ने बताया कि जैन धर्म ग्रंथ के अनुसार जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव (आदिनाथ) ने दीक्षा कल्याणक के बाद छःमाह तक घोर तपस्या की। छः माह के बाद आहार लेने के लिए ऋषभदेव भगवान ने अनेक ग्राम, नगर, शहर में विहार किया, किन्तु जनता व राजा लोगों को आहार की विधि( जैन धर्म में मुनियों के आहार लेने की एक अलग विधि होती है) मालूम न होने के कारण ऋषभदेव भगवान को धन, पैसा, सवारी आदि अनेक वस्तु दी गई। ऋषभदेव भगवान ने यह सब नहीं लिया क्योंकि किसी ने भी भगवान् को विधि पूर्वक आहार नहीं दिया. तब ऋषभदेव पुनः वन में पहुंच पुनः छःमाह की तपस्या और की. इस प्रकार कुल एक वर्ष तक भूखे रहकर तपस्या करने के पश्चात ऋषभदेव भगवान पुनः आहार चर्या के लिए घूमने लगे. भगवान ऋषभदेव आहार (भोजन) हेतु भ्रमण करते हुए हस्तिनापुर नगर के राजमहल के सामने पधारे. राजा के भ्राता श्रेयांस को भगवान ऋषभदेव का श्रीमुख देखते ही उसी क्षण, अपने पूर्व जन्म में एक सरोवर के किनारे दो चारण मुनियों को आहार दिया था,-उसका स्मरण हो गया। अतः आहारदान की समस्त विधि जानकर श्रेयांस एवं राजा सोमप्रभ श्री ऋषभदेव भगवान को तीन प्रदक्षिणा देकर पड़गाहन किया व भोजन गृह में ले गये। तब श्रेयांस और उनकी धर्मपत्नी सुमतीदेवी व ज्येष्ठ बंधु सोमप्रभ राजा अपनी लक्ष्मीपती आदि ने मिलकर श्री भगवान ऋषभदेव को सुवर्ण कलशों द्वारा इक्षुरस (गन्ना का रस) पिलाया. भगवान् ने दो खंडी इक्षु रस पीया तो दो खण्डी रस से पेट भर गया। आहारचर्या करके वापस जाते हुए ऋषभदेव भगवान ने सब दाताओं को ‘अक्षय दानस्तु’ अर्थात् दान इसी प्रकार कायम रहे, इस आशय का आशीर्वाद दिया, यह आहार वैशाख सुदी तीज को सम्पन्न हुआ था। जिस दिन तीर्थंकर ऋषभदेव का आहार हुआ था, उस दिन वैशाख शुक्ला तृतीया थी। उस दिन राजा सोमप्रभ के यहां भोजन, अक्षीण (कभी खत्म न होने वाला ) हो गया था। अतः आज भी लोग इसे अक्षय तृतीया कहते हैं। जैनधर्म के अनुसार भरत क्षेत्र में इसी दिन से आहार दान की परम्परा शुरू हुई। ऐसी मान्यता है कि मुनि का आहार देने वाला इसी पर्याय से या तीसरी पर्याय से मोक्ष प्राप्त करता है। राजा श्रेयांस ने भगवान ऋषभदेव (आदिनाथ) को आहारदान देकर अक्षय पुण्य प्राप्त किया था, अतः यह तिथि अक्षय तृतीया के रूप में मानी जाती है। यह दिन बहुत ही शुभ होता है, इस दिन बिना मुर्हूत निकाले हीं सभी शुभ कार्य संपन्न होते हैं।
जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ के एक साल उपवास से जुड़ा है अक्षय तृतीया पर्व
- undekhilive
- May 10, 2024
- 7:13 pm