पर्युषण पर्व के नौवें दिन उत्तम आकिंचन्य धर्म की पूजा
अनदेखी लाइव, पटना.
दसदिवसीय जैन पर्युषण पर्व के नौवें दिन उत्तम आकिंचन्य धर्म की पूजा होती है. स्वयं को समझना ही उत्तम आकिंचन धर्म है। आज पटना के मीठापुर, कदमकुआँ, मुरादपुर, कमलदह मंदिर गुलजार बाग सहित सभी दिगम्बर जैन मंदिरों में आकिंचन्य धर्म की पूजा की गयी. सभी दिगम्बर जैन मंदिरों में सुबह से ही पूजा करने हेतु श्रद्धालु मंदिरों में पहुँचने लगे. मंदिरों में श्रद्धालुओं ने भगवान् का अभिषेक किया एवं शांतिधारा के बाद दशलक्षण पूजन में आकिंचन्य धर्म की पूजा की गयी. जैन समाज के श्रद्धालु एम पी जैन ने बताया कि पर्युषण पर्व में आत्मा के दस स्वभाव पर कैसे विजय पाया जाए इसी को बताया जाता है। पर्युषण पर्व का नौवां दिवस ‘उत्तम आकिंचन्य’ नामक दिवस है.
श्री जैन ने बताया कि पर्वो के पर्वराज का नौवां चरण उत्तम आकिंचन – ‘राजा हो या रंक, सन्त हो या फकीर, सबको मौत आयेगी। ‘खाली हाथ आया है और खाली हाथ जायेगा। ‘जो हमने जोड़ा है, वो सब यहीं छूट जायेगा। जिसने कहा मेरा वो मरा। जिसने कहा तेरा वो तरा। किसी के पास कमी कुछ भी नहीं और कड़वा सच यही है कि पूरा कुछ भी नहीं है। सुख प्राप्त का नहीं, जितना दुःख – अप्राप्त का है। अप्राप्त के लिये ही हम अपना सारा जीवन दांव पर लगा देते हैं। ब्रह्माण्ड में जो सुख स्वयं को समझने का है वो सुख दूसरों को समझाने में नहीं है। दूसरों को समझाना सरल है परन्तु स्वयं को समझना और जानना सबसे कठिन काम है। अभी हम दूसरों को समझाने में जितने माहिर है, शायद स्वयं को समझने में उतने माहिर नहीं हो पा रहे, यही दुःख है इस जीवन का। स्वयं को समझने की दिशा ही उत्तम आकिंचन की दिशा है। हर व्यक्ति अपने भीतर के ब्रह्माण्ड से अनभिज्ञ है, अनजान और अपरिचित है। भीतर के ब्रह्माण्ड का अपना एक सौन्दर्य है। यदि एक बार उस ब्रह्माण्ड के सौन्दर्य से परिचित हो गये तो बाहर के सभी आकर्षण फीके और नीरस लगेंगे क्योंकि कहीं हरियाली है, तो कहीं उबड़ खाबड़ तो कहीं इच्छाओं के पहाड़ खड़े हैं। सबके भीतर के सौन्दर्य का विस्तार अलग-अलग है। जो स्वयं को जानने और समझने के लिये जितना समय देता है, या नहीं देता, या कम समय देता है. वह उस पर निर्भर करता है। हम स्वयं को कितना समय देते हैं और स्वयं से कितने परिचित हैं, यह स्वयं पर निर्भर करता है। क्योंकि आने वाले समय में, कोई व्यक्ति कितना भी महत्वपूर्ण क्यों ना हो लेकिन हमारे अन्दर उस ब्रह्माण्ड के प्रति देखने, जानने और समझने का वक्त नहीं है, तो हम भीतर के ब्रह्माण्ड के सौन्दर्य से अपरिचित ही रह जायेंगे। इसलिए जीवन के असली मर्म को जानने और समझने के लिये हर स्थिति में निज की चेतना का ध्यान रखना चाहिए। एकान्त विचारों से मौन, इच्छाओं को शान्त, मन की निर्लोभिता और शिशु सी निश्छलता ही उत्तम आकिंचन का सही मार्ग है। उत्तम आकिंचन धर्म का मतलब है- कुछ भी जोड़ लो, साथ कुछ भी नहीं जायेगा, सिर्फ साथ जायेगा – धर्म, सत्संग, पुण्य, सेवा सत्कार और परोपकार…!!!..
एम पी जैन ने बताया कि पर्युषण पर्व के अंतिम दिन शुक्रवार को ब्रह्मचर्य व्रत की पूजा की जायेगी. साथ ही कल जैन धर्म के बारहवें तीर्थंकर भगवान बासुपुज्य के निर्वाण दिवस पर पटना के सभी दिगम्बर जैन मंदिरों में श्रद्धालु निर्वाण लाडू चढ़ायेंगे.
“ना मैं किसी का, ना कोई मेरा, धर्म आकिंचन नाम इसी का“ – श्री ज्ञानमती माताजी