पटना। आध्यात्मिक सत्संग समिति द्वारा शक्तिधाम में सात दिवसीय भागवत कथा के अन्तिम दिन प्रारंभ में यजमान वाई सी अग्रवाल एवं लक्ष्मण टेकरीवाल ने सपरिवार व्यास पूजन एवं गुरु पूजन किया। तत्पश्चात डॉ गीता जैन, एम पी जैन, राकेश कुमार, गुंजेश ओझा, डॉ गौतम मोदी, डॉ चारु मोदी, डॉ सी पी अग्रवाल सहित अन्य ने आचार्य श्री को माल्यार्पण कर उनका आशीर्वाद लिया।
कथा विश्राम दिवस पर भागवत के अन्तिमांश की व्याख्या करते हुए शास्त्रोपासक आचार्य श्री डॉ चंद्रभूषणजी मिश्र बताया कि भागवत के अंत में थोड़ी सामाजिक, पारिवारिक एवं दैशिक राजनीति की चर्च भी की गयी है . भगवान् श्री कृष्ण ने सोलह हजार एक सौ अपहरण की गई लड़कियों को पत्नी का सम्मान दिया इसके लिए द्वारिका में किसी से राय नहीं ली . यहाँ तक की बड़े भाई बलराम तक से भी नहीं कहा . श्रीकृष्ण ने अपनी बहन सुभद्रा का अपहरण कराया. बलरामजी चाहते थे कि सुभद्रा का विवाह दुर्योधन से किया जाय परन्तु श्री कृष्ण ने अपने मित्र अर्जुन से सुभद्रा का अपहरण करा कर विवाह करा दिया . आचार्य श्री ने बताया कि सत्राजीत को सूर्य के द्वारा प्राप्त मणि की चोरी तथा उसके भाई प्रसेनजीत की हत्या की बदनामी भी श्रीकृष्ण को सहनी पड़ी .
युधिष्ठिर के यज्ञ में अग्र पूजा के लिए शिशुपाल ने भी गिन गिन कर एक सौ गाली दिया. श्रीकृष्ण की सोलह हजार एक सौ मानवीय स्त्रियों को जब अर्जुन सुरक्षा के लिए द्वारका से ले जा रहे थे तो रास्ते में अभिरों ने छेड़छार हीं नहीं किया बल्कि सबको पकड़ पकड़ कर अपने घर ले गए . उनके सभी स्त्रियों से दस दस बच्चे हुए थे . उनमे से आधे से ज्यादा वारुणी (शराब) के नशे में चूर होकर एक दूसरे को मार मार कर समाप्त कर दिया .
आचार्य श्री ने बताया कि श्रीकृष को भगवान् कहने के कारण ये सब लीलापरक घटना मानी जाती है , परन्तु श्रीकृष्ण अपने चरित्र से यह दिखाना चाहते हैं कि कलियुग में यह सब संभव है . क्योंकि कलियुग में अहंकार की वृद्धि हो जाने से कलियुगी मनुष्यों में धैर्य, अनुशासनप्रियता, कर्तव्य आदि की कमी हो जाती है . श्रीकृष्ण का अंत भी व्याधे के वाण से हुआ था .
बाद में बलरामजी के द्वारा सूत जी की प्राप्त मृत्यु की चर्चा की गयी है और बलरामजी ने कहा कि हम अपनी व्यास परंपरा चलाना चाहते हैं और बलरामजी ने उग्रसर्वा को बैठा कर अपनी परम्परा चलाई . नौ योगेश्वरों के द्वारा नारद जी के माध्यम से अपने माता पिता बासुदेव – देवकी को ज्ञान देकर परम पद लाभ करवाया .
आचार्य श्री बताया कि भागवत नकद धर्म है . श्री सुकदेव ने परीक्षित से पूछा कि कथा सुनने के बाद आपको किस तरह का ज्ञान प्राप्त हुआ तो परीक्षित ने हाथ जोड़कर कहा कि भागवत ज्ञान विज्ञानं सम्मत ग्रन्थ है . ज्ञान से ब्रह्म की प्राप्ति होती है , विज्ञान द्वारा शरीर की अंतिम प्रक्रिया मृत्यु का ज्ञान प्राप्त होता है .
निष्कर्ष के तौर पर सुकदेव जी ने भागवत का दो सन्देश दिया है –
पहला नाम जपने का और सब किसी में भगवान् मानकर प्रणाम करने का.
दूसरा नाम, जप एवं प्रणाम करने की क्रिया ही भागवत है .
भागवत कथा का समापन आरती के साथ हुआ। कथा का संचालन डॉ गीता जैन ने किया। एम पी जैन ने बताया कि आज के कथा में संयोजक गणेश खेतड़ीवाल, अरुणा खेतड़ीवाल, महामंत्री विष्णु सुरेका, अमर अग्रवाल, अक्षय अग्रवाल, मनोज अग्रवाल, तनुजा अग्रवाल, पुष्पा जैन, जय प्रकाश अग्रवाल, सुभाष चौधरी, गौरव अग्रवाल, तनुजा अग्रवाल, सूर्य नारायण, राजकुमार सर्राफ, शकुंतला अग्रवाल, विनोद झुनझुनवाला, नंदन कुमारी एवं अर्चना अग्रवाल, सहित सैकड़ों की संख्या में महिलाएं एवं पुरुष मौजूद थे।