पटना। ओडिसा के पुरी की तर्ज पर राजधानी पटना में भी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा की धूम मचेगी। इस्कॉन पटना की ओर से 20 जून को भगवान श्री जगन्नाथ रथयात्रा की तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। रथयात्रा दोपहर ढाई बजे इस्कॉन मंदिर से निकलेगी। यह तारामंडल, आयकर गोलंबर, हाईकोर्ट, बिहार म्यूजियम, पटना वीमेंस कॉलेज होते फिर इंस्कॉन मंदिर शाम सात बजे तक लौटेगी। गुरुवार को इस्कॉन पटना के अध्यक्ष कृष्ण कृपा दास ने इस्कॉन मंदिर में आयोजित प्रेसवार्ता में यह जानकारी दी।
रथयात्रा का विशेष आकर्षण 40 फीट ऊंचा हाईड्रोलिक सिस्टम से बना रथ होगा। इसमें बिहार ही नहीं देश-विदेश से सैकड़ों श्रद्धालु शामिल होंगे। इसके लिए बड़े पैमाने पर प्रसाद बनाने की तैयारी शुरू कर दी गई है। मुंबई से पधारे इस्कॉन के जोनल सचिव श्री देवकी नंदन दास जी ने कहा कि भगवान श्री जगन्नाथ जी भगवान श्रीकृष्ण के ही अभिन्न स्वरूप हैं। उनकी यह यात्रा लीला अद्भुत है। यह रथयात्रा एकता और सुख-शांति का प्रतीक है। भगवान की महती कृपा है कि जीवों के कल्याण और दर्शन देने के लिए स्वयं प्रत्येक वर्ष बाहर निकलते हैं। भगवान जगन्नाथ जगत के मालिक हैं। साक्षात स्वयं श्रीकृष्ण हैं। इससे लोगों की आध्यात्मिक आस्था और मजबूत होगी। यह एक महासंगम है।
पुरी रथयात्रा का इतिहास
पौराणिक कथाओं के अनुसार ओडिसा में राजा इन्द्रद्युम्न भगवान जगन्नाथ को शबर राजा से यहां लेकर आए थे तथा उन्होंने ही मूल मंदिर का निर्माण कराया था जो बाद में नष्ट हो गया। इस मूल मंदिर का कब निर्माण हुआ और यह कब नष्ट हो गया इस बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं है। ययाति केशरी ने भी एक मंदिर का निर्माण कराया था। ऐसा माना जाता है कि वर्तमान 65 मीटर ऊंचे मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में चोल गंगदेव तथा अनंग भीमदेव ने कराया था। परंतु जगन्नाथ संप्रदाय वैदिक काल से लेकर अब तक मौजूद है।
धार्मिक मान्यता
इस रथ यात्रा को लेकर धार्मिक मान्यता यह चली आ रही है कि एक बार बहन सुभद्रा ने अपने भाइयों कृष्ण और बलरामजी से नगर को देखने की इच्छा प्रकट की तो फिर दोनों भाइयों ने अपनी बहन की इच्छा को पूरा करने के लिए भव्य रथ तैयार करवाया और उस पर सवार होकर तीनों नगर भ्रमण के लिए निकले थे। इसी मान्यता को मानते हुए हर साल पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा आयोजित होती है।
दस दिवसीय महोत्सव
पुरी का जगन्नाथ मंदिर के दस दिवसीय महोत्सव की तैयारी का श्रीगणेश अक्षय तृतीया को श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के रथों के निर्माण से हो जाता है। कुछ धार्मिक अनुष्ठान भी किए जाते हैं।
गरुड़ध्वज
जगन्नाथ जी का रथ गरुड़ध्वज या कपिलध्वज कहलाता है। 16 पहियों वाला यह रथ 13.5 मीटर ऊंचा होता है जिसमें लाल व पीले रंग के वस्त्र का प्रयोग होता है। विष्णु का वाहक गरुड़ इसकी रक्षा करता है। रथ पर जो ध्वज है, उसे त्रैलोक्यमोहिनी या नंदीघोष कहते हैं।
तालध्वज
बलराम का रथ तालध्वज के नाम से पहचाना जाता है। यह रथ 13.2 मीटर ऊंचा और 14 पहियों का होता है। यह लाल, हरे रंग के कपड़े व लकड़ी के 763 टुकड़ों से बना होता है। रथ के रक्षक वासुदेव और सारथी मताली होते हैं। रथ के ध्वज को उनानी कहते हैं। त्रिब्रा, घोरा, दीर्घशर्मा व स्वर्णनावा इसके अश्व हैं। जिस रस्सी से रथ खींचा जाता है, वह वासुकी कहलाता है।
पद्मध्वज या दर्पदलन
सुभद्रा का रथ पद्मध्वज कहलाता है। 12.9 मीटर ऊंचे 12 पहिए के इस रथ में लाल, काले कपड़े के साथ लकड़ी के 593 टुकड़ों का प्रयोग होता है। रथ की रक्षक जयदुर्गा व सारथी अर्जुन होते हैं। रथध्वज नदंबिक कहलाता है। रोचिक, मोचिक, जिता व अपराजिता इसके अश्व होते हैं। इसे खींचने वाली रस्सी को स्वर्णचूड़ा कहते हैं। दसवें दिन इस यात्रा का समापन हो जाता है।