कलाकारों का अपमान, महिला या बालिका हैं तो नहीं दिया जाएगा स्टेज – रवींद्र भवन में गौड़ीय मठ का कार्यक्रम और उनकी असलियत।

आज भी हमारे देश में ऐसी कई प्रथाएं चली जा रही है जिनपर सवाल उठने वाला कोई नहीं है। ऐसी एक प्रथा के विषय में पता चला पटना के जक्कनपुर स्थित गौड़ीय मठ के बारे में, जो २७ मई को वार्षिक उत्सव मनाने जा रहे हैं रवींद्र भवन में। गौड़ीय मठ के विचारों और प्रोटोकॉल के अनुसार किसी भी महिला या नारी को गौड़ीय मठ से जड़ित किसी भी कार्यक्रम में भाग लेने का अधिकार पुरुष के समान नही दिया जायेगा। पुरुष के समान तो क्या, महिलाओं को हक ही नही दिया जायेगा की वे ऐसे किसी कार्यकम में सम्मिलित होकर अपने कला का प्रदर्शन करें। सोचने का विषय ये है की ऐसा देश जिसमे आज नारी शक्ति की लोग बातें करते हैं, नारी सशक्तिकरण की बातें करते है, महिलाओं को उचित सम्मान और उनके जन्म सिद्ध अधिकारों को सफल बनाने के लिए जगह जगह मुहिम चलाई जा रही है, वही ऐसे संस्थान अभी भी मौजूद हैं जो की ऐसी हीन भावना को बढ़ावा दे रहे हैं, चुकी ऐसा करने वाले मठ के पुजारी और धार्मिक लोग है, तो इनपर नगर के गणमान्य लोग सवाल नही करते।

इस कार्यक्रम में रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखित भानुशिंह की पदावली नृत्य नाट्य का मंचन होने जा रहा था जो की खास तौर से कृष्ण और राधा के प्रेम पर आधारित है, इस नृत्य नाट्य के ९० प्रतिशत नृत्य महिला किरदारों पर ही आधारित है, ये जानते हुए भी गौड़ीय मठ के मुख्य संचालक ने इस नृत्य नाट्य के मंचन को स्वीकृति दे दी और लगभग एक महीने से नृत्यांगनाएं लगातार ताप्ती गर्मी में अभ्यास किए जा रहे थे। २६ मई को फाइनल रिहर्सल करने के लिए पहुंचे नृत्यांगनाओं को कहा गया की यदि उनके नृत्य नाट्य का मंचन किया जाता है तो कोलकाता से बाकी साधु महाराज लोग कार्यक्रम में उपस्थित नही होंगे। यानी की नृत्यांगनाओं को एक तरीके से धमकी ही दी गई जिससे वे इस कार्यक्रम को छोड़ देने पर मजबूर हो जाए।

उसके अलावा रवींद्र भवन के टेक्निकल डिपार्टमेंट की ओर से भी नृत्यांगनाओं के ग्रुप के साथ बदसलूकी की गई। हॉल में कर रह रिहर्सल के दौरान बार बार लाइट्स के लिए लाइट ऑपरेटर से विनती की गई मगर अपने गुरुर में चूर लाइट ऑपरेटर ने लाइट्स नही लगाई तथा अपने कार्यभार की ओर सुस्ती प्रदर्शन करने लगे। तत्पश्चात बीच रिहर्सल के दौरान ही मठ से फोन आया की महिलाओं को सम्मिलित न किया जाए। सभी कलाकारों के लिए भीषण अपमानजनक स्थिति उत्पन्न हो गई, और नृत्यांगनाओं में से कुछ कलाकार तो उसी समय वहां रो पड़े, क्योंकि ऐसा अनुचित व्यवहार उनसे सहा न गया। मठ तो मठ मगर रवींद्र भवन के कार्यकर्ताओं ने भी नृत्यांगनाओं का अपमान ही किया। ऐसी घटिया सोच और कलाकारों के अपमान के खिलाफ आवाज उठाना हर नागरिक का कर्तव्य है। कलाकारों को मिलकर ऐसे संगठन और रवींद्र भवन जैसे संस्थाओं के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।

undekhilive
Author: undekhilive

Leave a Comment

× How can I help you?